Last Updated on July 25, 2025 by Chandan Saini
“अगर आप भी इस सवाल में उलझे हैं कि शादी के बाद बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार बचता है या नहीं, तो मैं आपको बताना चाहता हूं — इस विषय में भ्रम जितना बड़ा है, असलियत उतनी ही स्पष्ट और सशक्त है।”
मैंने खुद कई परिवारों को संपत्ति विवादों में उलझते देखा है। खासकर जब बात बेटियों की आती है, तो लोग आज भी पुराने रीति-रिवाजों को कानून से ऊपर मानते हैं। इसलिए मैंने तय किया कि मैं इस ब्लॉग में आपको साफ-साफ और सरल भाषा में बताऊं कि एक बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार शादी के बाद भी खत्म नहीं होता। हां, आपने बिलकुल सही पढ़ा — अधिकार बना रहता है, वो भी पूरी ज़िंदगी के लिए।
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Toggleपहले क्या था? अब क्या है? – कानून का सफर
भारत में एक समय था जब बेटियों को संपत्ति के अधिकार से लगभग वंचित ही कर दिया जाता था। “शादी हो गई तो अब उसका मायका नहीं रहा” जैसी बातें आम थीं। लेकिन कानून ने समाज की इस सोच को चुनौती दी और बदला।
2005 का बदलाव – एक क्रांतिकारी फैसला
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में साल 2005 में एक ऐसा संशोधन हुआ जिसने बेटी और बेटे के अधिकारों को बराबरी पर ला खड़ा किया।
अब बेटी चाहे शादीशुदा हो या अविवाहित — वो अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार है।
- पहले केवल बेटों को ही पैतृक संपत्ति में सह-अधिकार प्राप्त था
- अब बेटियां भी सह-उत्तराधिकारी (coparcener) मानी जाती हैं, ठीक बेटे की तरह
- शादी के बाद भी यह अधिकार जीवनभर वैध रहता है — कोई समय सीमा नहीं
शादी के बाद कितने साल तक होता है अधिकार?
यह सवाल बहुत बार मुझसे पूछा गया है — “अगर बेटी की शादी को 10–20 साल हो चुके हैं, तो क्या अब भी उसे संपत्ति मिल सकती है?”
और मेरा जवाब हमेशा साफ होता है —
“जी हां, मिल सकती है और मिलनी भी चाहिए।”
कानून के अनुसार:
- बेटी का अधिकार समय पर आधारित नहीं है
- चाहे शादी को 1 साल हुआ हो या 50 साल, उसका हक बना रहता है
- बेटी का अधिकार पैदाइशी होता है, और वह तब तक खत्म नहीं होता जब तक संपत्ति का बंटवारा कानूनी रूप से न हो जाए

पैतृक बनाम स्वअर्जित संपत्ति – क्या फर्क पड़ता है?
यहाँ पर एक और सवाल आता है – क्या बेटी को सिर्फ पैतृक संपत्ति में हक होता है या स्वअर्जित संपत्ति में भी?
पैतृक संपत्ति:
- जो पिता ने अपने पूर्वजों से पाई हो
- बेटी का इस पर जन्म से ही अधिकार होता है
- किसी वसीयत की ज़रूरत नहीं होती
स्वअर्जित संपत्ति:
- जो पिता ने खुद मेहनत से कमाई हो
- इस पर बेटी का हक तभी बनता है जब:
- पिता ने वसीयत नहीं बनाई हो
- और बेटी कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में आती हो
अगर वसीयत है, तो पिता जिसे चाहे संपत्ति दे सकते हैं — लेकिन बिना वसीयत के स्थिति में बेटी का भी बराबर हक बनता है।
क्या दामाद को भी कोई अधिकार होता है?
यह सवाल जितना आम है, उतना ही गलतफहमियों से भरा हुआ भी है।
मैं आपको बिलकुल साफ कर दूं — दामाद को ससुर की संपत्ति में कोई भी सीधा कानूनी अधिकार नहीं होता।
- संपत्ति का अधिकार सिर्फ बेटी के नाम पर होता है
- दामाद, सिर्फ विवाह के रिश्ते से, ससुर की संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता
ये भारत के कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में स्पष्ट किया जा चुका है।
ग्राउंड पर क्या होता है? – कानूनी अधिकार और सामाजिक हकीकत
कानून जितना मजबूत हुआ है, समाज में सोच उतनी ही धीरे बदली है।
अभी भी बहुत से मामलों में बेटियों को उनके हक से वंचित कर दिया जाता है — सिर्फ इसलिए कि “शादी के बाद वो पराया धन हो गई है।”
लेकिन सच तो ये है कि:
- बहुत सी बेटियां अपने अधिकार से डर या शर्म के कारण चुप रहती हैं
- परिवार के विवाद से बचने के लिए कानूनी कदम नहीं उठातीं
- या फिर उन्हें सही जानकारी ही नहीं होती
मैं यही कहना चाहूंगा — अगर आप या आपकी कोई जानकार बेटी ऐसी स्थिति में है, तो उसका समर्थन करें, जानकारी दें और ज़रूरत हो तो कानूनी मदद जरूर लें।
समाधान क्या है? – कैसे मिले न्याय?
जागरूकता सबसे बड़ी ताकत है:
- बेटियों को उनके अधिकार बताए जाएं
- स्कूल-कॉलेज स्तर पर कानून की शिक्षा दी जाए
- मीडिया और सोशल मीडिया पर अधिक चर्चा हो
कानूनी सहायता पहुँचाई जाए:
- ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) जैसी संस्थाएं मुफ़्त कानूनी सहायता देती हैं
- NGO और महिला आयोग की मदद ली जा सकती है
परिवारों की सोच बदले:
- माता-पिता बेटियों को भी बेटों की तरह समझें
- संपत्ति बंटवारे में पारदर्शिता रखें
- बेटियों को अधिकार देने में हिचक न दिखाएं
भविष्य की दिशा – बेटी अब अधिकार मांगती नहीं, जानती है
हिंदू उत्तराधिकार कानून में 2005 का बदलाव सिर्फ एक कागज का कानून नहीं था — वो एक सोच की क्रांति थी।
अब समय है कि हम सब मिलकर इसे जमीनी हकीकत बनाएं।
- कानून में अभी भी डिजिटल संपत्ति, शेयर मार्केट, म्यूचुअल फंड जैसे आधुनिक निवेशों पर अधिक स्पष्टता की जरूरत है
- बेटियों को केवल जमीन-जायदाद ही नहीं, हर प्रकार की संपत्ति में बराबर हक मिलना चाहिए
निष्कर्ष – बेटी का हक उसका जन्मसिद्ध अधिकार है
आज मैं आपसे सिर्फ एक बात कहकर इस लेख को खत्म करूंगा:
बेटी सिर्फ किसी की जिम्मेदारी नहीं होती — वो अधिकार रखती है, और वो अधिकार उसे मांगकर नहीं, कानून से मिला है।
अगर आप एक बेटी हैं, तो अपने अधिकार को समझिए।
और अगर आप एक पिता, भाई या मां हैं — तो उसे उसका अधिकार दीजिए।
यही सही न्याय है, यही सही रिश्ता है।
अस्वीकरण:
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य के लिए है। किसी भी कानूनी निर्णय से पहले कृपया किसी योग्य वकील या विशेषज्ञ से सलाह लें। लेख में दी गई जानकारी इंटरनेट स्रोतों और कानूनी दस्तावेजों पर आधारित है।
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