Last Updated on July 25, 2025 by Chandan Saini
क्या आप भी टैक्स बचाने के लिए अपनी पत्नी या किसी करीबी के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदने का सोच रहे हैं? तो रुक जाइए! हाल ही में एक हाईकोर्ट के फैसले ने ऐसे लोगों के लिए एक गंभीर चेतावनी जारी की है। अब अगर आपने अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति ली है और पैसा आपने ही दिया है, तो वो संपत्ति ‘बेनामी’ मानी जा सकती है – और इसके लिए आपको जेल तक हो सकती है।
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Toggleक्यों आया यह मामला चर्चा में?
हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए साफ कहा कि अगर कोई व्यक्ति अपने ही पैसे से अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है, तो इसे बेनामी लेनदेन माना जाएगा। यानी कि संपत्ति भले ही पत्नी के नाम पर हो, लेकिन असली मालिक वही है जिसने पैसा दिया – और यही है बेनामी संपत्ति की असली परिभाषा।
क्या होती है बेनामी संपत्ति?
बेनामी संपत्ति का मतलब है – वो संपत्ति जो किसी और के नाम पर हो लेकिन उसके पीछे का पैसा किसी और का हो। उदाहरण के लिए, अगर पति ने पैसा दिया और घर पत्नी के नाम रजिस्टर्ड कराया, तो भले ही कागजों में पत्नी मालिक दिखे, लेकिन असल में मालिक पति ही होगा। और यही इसे गैरकानूनी बनाता है।
भारत में बेनामी लेनदेन (निषेध) कानून 1988 के तहत ऐसी संपत्तियों को गैरकानूनी करार दिया गया है। 2016 में इसमें संशोधन कर इसे और कड़ा बना दिया गया, ताकि टैक्स चोरी पर लगाम लगाई जा सके।
हाईकोर्ट के इस फैसले का असली मतलब
हाईकोर्ट ने यह फैसला सिर्फ एक केस के लिए नहीं दिया – बल्कि ये पूरे देश के लिए एक नज़ीर बन सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा:
- यदि संपत्ति का भुगतान पति ने किया है, पर नाम पत्नी का है – तो ये बेनामी है।
- नाम बदलने से जिम्मेदारी नहीं बदलती।
- कानून वास्तविक स्वामित्व को देखता है, न कि सिर्फ दस्तावेज़ों को।
इसका मतलब है कि अब सिर्फ नाम के सहारे कोई भी व्यक्ति कानून से नहीं बच सकता।
बेनामी संपत्ति कानून के तहत सजा कितनी कड़ी है?
बेनामी कानून का उल्लंघन करना मज़ाक नहीं है। इसके दायरे में आने पर आपको मिल सकती है:
- संपत्ति की तत्काल जब्ती
- 7 साल तक की जेल
- भारी जुर्माना – कई बार तो संपत्ति के मूल्य से भी ज्यादा
यहां तक कि अगर किसी सौदे में बिचौलिए, वकील या प्रॉपर्टी डीलर भी शामिल हैं, तो वे भी अपराध के हिस्सेदार माने जाएंगे।

क्या पत्नी को संपत्ति गिफ्ट कर सकते हैं?
बहुत से लोग सोचते हैं कि अगर वो अपनी पत्नी को संपत्ति “गिफ्ट” कर दें, तो वो बेनामी नहीं मानी जाएगी। लेकिन ये तभी वैध है जब:
- पैसे का स्रोत वैध और घोषित हो
- गिफ्ट डीड सही प्रक्रिया से रजिस्टर्ड हो
- आयकर रिटर्न में इसका उल्लेख हो
यदि इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं होती, तो गिफ्ट भी बेनामी संपत्ति बन सकता है। कोर्ट इस बात को देखता है कि मकसद क्या था – सिर्फ कागजों पर कुछ लिख देने से असलियत नहीं छिपती।
टैक्स बचाने के वैध तरीके – जो आपको परेशानी में नहीं डालेंगे
अगर आप ईमानदारी से टैक्स बचाना चाहते हैं, तो कानून में उसके लिए भी विकल्प मौजूद हैं। जैसे:
धारा 80C के तहत निवेश: ELSS, PPF, LIC आदि में निवेश करके आप ₹1.5 लाख तक की छूट ले सकते हैं।
होम लोन पर छूट: मूलधन और ब्याज दोनों पर टैक्स बचाया जा सकता है।
स्वास्थ्य बीमा और एजुकेशन लोन: इन पर भी अच्छी-खासी छूट मिलती है।
नेशनल पेंशन स्कीम (NPS): अतिरिक्त ₹50,000 की छूट का लाभ।
संयुक्त संपत्ति खरीदें: यदि पति-पत्नी दोनों की आय है, तो जॉइंट प्रॉपर्टी में टैक्स लाभ दोगुना मिल सकता है।
इन सभी उपायों से आप न सिर्फ टैक्स बचा सकते हैं, बल्कि भविष्य के लिए सुरक्षित निवेश भी कर सकते हैं।
क्या है पारदर्शिता की असली अहमियत?
इस हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि कर चोरी का कोई शॉर्टकट नहीं बचा है। यदि आप संपत्ति खरीदते समय पारदर्शिता नहीं रखते, तो भविष्य में भारी दिक्कत हो सकती है।
सावधान रहने के कुछ उपाय:
- केवल बैंक ट्रांजेक्शन करें, नकद से बचें
- सभी दस्तावेज रजिस्टर्ड और वैध रखें
- आयकर रिटर्न में सभी संपत्तियों की सही जानकारी दें
- उपहार देने से पहले वकील से सलाह लें
- किसी भी कर चोरी या गड़बड़ी से दूर रहें

निष्कर्ष: कानून से बड़ा कोई नहीं
अगर आप टैक्स बचाने के चक्कर में पत्नी या किसी और के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदने की सोच रहे हैं, तो अब रुक जाइए। कानून अब पहले से ज्यादा सख्त हो चुका है। जो तरीका पहले लोगों को ‘स्मार्ट’ लगता था, वही अब उन्हें जेल की ओर ले जा सकता है।
संपत्ति में पारदर्शिता और टैक्स नियमों का पालन करना न केवल कानूनी है बल्कि आपके और आपके परिवार के लिए सुरक्षित भी है। याद रखिए – थोड़ी सी चालाकी से हो सकता है आप टैक्स बचा लें, लेकिन एक गलत कदम आपको कानून के शिकंजे में फंसा सकता है।
Disclaimer:
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है। कृपया किसी भी क़ानूनी कार्रवाई से पहले अपने वकील या विशेषज्ञ से सलाह लें। संपत्ति से जुड़ा हर निर्णय सोच-समझकर लें।
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